India's economy moving towards 'acche din'?
Economy | Information | History | Online | Facts | World | Global | Money
On Prime Time, an analysis of India's GDP growth and its position in the world as the fastest growing major economy. Experts on the show point out the challenges ahead for the Centre and how they can help corporate investment grow at a higher rate than it is now. (Audio in Hindi) Watch full video: http://khabar.ndtv.com/video/show/prime-time/gdp-growth-and-lower-middle-income-status-418203?yt Download the NDTV news app: https://play.google.com/store/apps/details?id=com.july.ndtv&referrer=utm_source%3Dyoutubecards%26utm_medium%3Dcpc%26utm_campaign%3Dyoutube
Comments
-
There are no jobs in India , many graduates who pass from colleges/universities are unemployed with unstable future, Business organizations even small ones are upping the ante to get a job & one can't get employment vacancy news without giving few hundreds even thousand rupees to placement firms which are developing like wild untenable mushrooms in all over India. They even charge 1st months' whole salary just after joining keeping in mind that those pvt. jobs aren't stable govt. jobs. And not everybody can do blue collar jobs in India because of cultural & social custom gap here, unlike in the west. Beside that, self-employment skills are also low here & even starting that need a good amount of money & if one doesn't succeed in this the whole money will be lost. Acche din in rathole India, what a third-class joke. It can be for businessmen & politicians.
-
Lots of pakistani trolls are now bitching in the comment box, naturally they didn't like it !!
-
Where are the jobs other than shitty call centres and big stores.Jobs you are producing are slavery and abuse.There is no addition of jobs in agriculture,manufacturing etc
-
Gulabkothari's Blog
मई 28, 2016
संकल्प करें
Filed under: Special Articles — gulabkothari @ 7:00
Tags: gulab kothari, gulab kothari articles, hindi articles, indian politics, rajasthanpatrika articles, special article
जीवन एक संकल्प है, उद्देश्य है। बिना संकल्प जीवन और मृत्यु का भेद समाप्त हो जाता है तथा मनुष्य और पशु के मध्य की रेखा भी लुप्त हो जाती है। क्या बेईमानी से करोड़ों कमाने वाला जानता है कि वह कितना कमाना चाहता है और क्यों? यह अज्ञानता ही मृत्यु है। इस दृष्टि से पत्रिका एक समाचार-पत्र भी है, संकल्प भी है और समाज का रहनुमा भी है। आज हर पाठक को भरोसा है कि हमारे बीच ‘पत्रिका’ है जो सच्चाई को न छुपाता है और न ही छिपने देता है। यही तो संकल्प है, यही पत्रिका की पहचान है।
पाठक का हित ही पत्रिका की विषय वस्तु है। शायद यही कारण है कि पत्रिका का नाम पेड न्यूज में भी नहीं आया और ना ही पनामा पेपर्स लीक में ही कहीं पढऩे-सुनने को मिला। पाठक के लिए यही गर्व की बात भी है। युवा पीढ़ी के लिए यही मंगल संस्कार हैं। आज न्याय तो आम आदमी के लिए दुर्लभ ही हो गया। जगह-जगह की ठोकरें जब व्यक्ति को थका देती हैं, तब उसे पहले पत्रिका याद आता है, फिर भगवान। वह पत्रिका पहुंचता है, बेझिझक अपनी बात करता है। उसके मन में विश्वास तो है ही कि पत्रिका में उसकी बात दबेगी नहीं, पत्रिका न केवल मुद्दे को उठाएगा बल्कि उसके लिए पाठक के साथ संघर्ष भी करेगा।
पत्रिका की पहल पर आवासीय कॉलोनियों में शराबबंदी अभियान चलाया गया। इसी तरह व्यापमं, खनन माफिया, ड्रग ट्रायल, जमीन का दर्द, सूदखोरी जैसे जन विरोधी अपराधों के खिलाफ पत्रिका ने अभियान चलाए। तब कहीं नियम-कायदों में सुधार भी हुआ तो कई बदले भी गए।
आज यह बात भी कहावत बन गई है कि अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा। वहीं पत्रिका ने जन साधारण को प्रेरित करके ‘अमृतम् जलम्’ अभियान शुरू किया था। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सहित सवा-डेढ़ लाख लोगों ने भोपाल के बड़े तालाब की खुदाई करके जल संग्रहण का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। पत्रिका का हौसला, यश बुलन्दी पर पहुंच गया। अभियान ने प्रदेश भर में अपने परिणाम साल-दर साल देने शुरू कर दिए। उसके बाद तो वृक्षारोपण, बाल शिक्षा कार्यक्रम, नींव, बेटी बचाओ जैसे सामाजिक जागरुकता के कई कार्यक्रम हाथ में लिए। चुनावों में तो ‘मतदाता को जागरूक’ करने, लोकतंत्र की गहराइयों को छूने, जनप्रतिनिधियों के कार्यों का कच्चा चिट्ठा खोलने तथा उनसे मतदाता को ‘रूबरू’ कराने का अनूठा कार्य भी पत्रिका ने वर्षों से हाथ में ले रखा है। इसके लिए भारतीय चुनाव आयोग की ओर से शुरू किया गया प्रथम ‘राष्ट्रीय मीडिया अवॉर्ड’ भी पत्रिका की झोली में आया।
पत्रिका का एक संकल्प यह भी है कि इसमें छपी सामग्री के कारण किसी पाठक का धन व्यर्थ न हो जाए। गलत सूचनाएं पाठकों तक न पहुंच जाएं। पाठकों की मूल्यपरक जीवनशैली में, भारतीय पृष्ठभूमि के केन्द्रीभूत एवं शाश्वत संस्कारों में भी अभिवृद्धि बनी रहे। यही कारण है कि पत्रिका में छपी वर्षभर की श्रेष्ठ कविता तथा कहानी को 21-21 हजार रुपए का पुरस्कार दिया जाता है। पत्रिका में श्रेष्ठ साहित्य का प्रकाशन इसी कारण है।
मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में आकर हमने एक-एक ईंट जोड़कर, प्रदेश की खुशहाली का चित्र तैयार किया है। इसकी लकीरें भावनात्मक भाषा में उकेरी गई हैं। इन्हीं लकीरों में पाठकों की धड़कनें हैं, उनके जीवन के जीवन्त स्पन्दन हैं। आज का यह की-नोट कार्यक्रम भी मध्यप्रदेश में इसी शृंखला की एक कड़ी है। इससे पहले की-नोट शृंखला के तीन आयोजन जयपुर में हो चुके हैं। इन सभी का मकसद विभिन्न मुद्दों और समस्याओं के तात्कालिक और दीर्घकालिक समाधान समाज एवं राष्ट्र के सम्मुख रखना है। अब यही आग्रह यहां आए हुए विशेषज्ञों से है। आप सभी वक्ताओं को इन स्वप्नचित्रों में रंग भरने हैं। वे हमारे विकास के नियामक तत्त्व होंगे। मध्यप्रदेश का विकास तथा मानव जीवन को सार्थक करने का यही श्रेष्ठ मार्ग होगा। ईश्वर सदा हमारे साथ होंगे। बस, संकल्प शुद्ध हो।
नमस्कार! -
WEDNESDAY, JUNE 1, 2016
सेस की महिमा और देश में बढ़ते सेवा कर के पीछे का सच
https://sumitnegi.blogspot.in/2016/06/blog-post.html
आज यानि कि 1 जून, 2016 का दिन काफी गहमागहमी में चल रहा है. हर कोई सेस के बारे में बात कर रहा है. कारण है कि आज की तारीख से सभी प्रकार की सेवाओं पर पहले से चलते आ रहे सेवा कर में एक अतिरिक्त कर यानि कि टैक्स जोड़ दिया गया है. इस नए तरह के अधिभार को नाम दिया गया है 'कृषि कल्याण सेस'.
कृषि कल्याण सेस - नाम सुनने से ही मन पावन पावन हो गया. बस ऐसा लग रहा है कि अभी जब मैं अपने मोबाइल का बढ़ा हुआ बिल जमा करूँगा तो उससे किसानों की आत्महत्या रुक जाएगी. ठीक वैसे ही जैसे लगभग छह महीने पहले इसी सरकार द्वारा लगाये हुए 'स्वच्छ भारत सेस' से मेरा देश पूरा स्वच्छ हो गया (मजाक है, क्यूंकि सब मजाक बन कर रह गया है).
आखिर क्या कारण है कि स्वच्छ भारत सेस लगाने के समय पर जो लोग चुप रहे, वो भी अब अपनी आवाज मुखर करने लगे हैं? क्यूँ लोग किसानों का भला होने का अंदाजा देने वाले इस अधिभार पर विरोध के स्वर प्रकट कर रहे हैं?
इसका कारण है वर्तमान सरकार द्वारा देश को दिए गए भाषणों में सरकारी प्रगति की ऊंची ऊंची कहानियां सुनाना और उसके बावजूद भी बढती महंगाई से कोई राहत न दिलाते हुए रोज नए नए टैक्स बढ़ाना. 'स्वच्छ भारत सेस' के नाम से बटोरे गए धन का क्या उपयोग हुआ है, कहाँ गया ये पैसा, इन सवालों के जवाब जनता ढूंढ तो रही है लेकिन लगता है कि ये जवाब सर्फ एक्सेल से धुलकर गायब हो गए हैं. ढूंढते रह जाओगे वाला डायलॉग रह रह कर मन को कचोट जाता है.
देश में पिछले दो सालों में किसानों की हुई बदहाली और उनकी बढती आत्महत्याओं पर जब सरकार को घेरा जाने लगा है तो सरकार ने इसमें भी अपनी कमाई का जरिया निकाल लिया. अब कोई इस नए अधिभार का विरोध करे तो उसे किसान विरोधी घोषित कर दिया जायेगा. चित्त भी मेरी और पट भी मेरी. वाह जी वाह.
चलिए अब ये नया अधिभार लगाया है तो इसके पीछे कोई योजना तो होनी चाहिए थी किसानों की समृद्धि के लिए. फिर भी, अगर केंद्र सरकार अगले महीने से किसानों की होने वाली आत्महत्याओं पर रोक लगवा सके तो समझा जा सकता है कि हमारे पैसे से कुछ अच्छा काम हो गया. मुश्किल सिर्फ यही है कि इस सरकार ने पिछले 'स्वच्छ भारत सेस' से जनता को कोई भी ऐसा भरोसा दिलाया नहीं है.
सेस के बारे में सोचते सोचते मुझे ये प्रश्न मन में कौंधा कि आखिर क्या कारण है कि भाजपा की वर्तमान सरकार को बार बार जनता पर नए नए टैक्स लगाने पर मजबूर होना पड़ रहा है? जब इस सरकार से सवाल पूछे जाते हैं तो आंकड़ों को इधर का उधर करके ये बता देते हैं कि देश की जीडीपी में अंधाधुंध वृद्धि हो गयी है. वो आंकड़े सुनते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है. लेकिन जैसे ही वास्तविकता में अपने महीने का बढ़ा हुआ बजट और घटती हुई कमाई पर नज़र पड़ती है तो सारी ख़ुशी तुरंत उड़न-छू हो जाती है. दो साल पहले जब ये सरकार सत्ता में आई थी उस समय सेवा कर 12.5% था और आज की तारीख में ये बढ़कर 15% हो गया है. अगर इस देश की जीडीपी पिछले दो साल में इतनी ही तेजी से आगे बढ़ रही है तो फिर जनता पर 2.5% का अतिरिक्त टैक्स क्यूँ?
तब मुझे समझ में आया कि असल में इस सरकार के कार्यकाल में लोगों की कमाई घट गयी है, व्यापार में कमी आ रही है, और वास्तव में जीडीपी में कमी आ रही है, जिस वजह से सरकार को अपने कार्यकलापों को जारी रखने के लिए जरुरी धन की आपूर्ति इस तरह के अतिरिक्त टैक्स लगाकर करी जा रही है. सीधा सा गणित है कि अगर लोगों की कमाई बढ़ी होती तो अपने आप ही सरकार के पास उतने ही टैक्स में ज्यादा धन जमा होता लेकिन लोगों की कमाई कम होने के कारण ही सरकार को अपने खर्चों के लिए लोगों पर अतिरिक्त टैक्स का बोझ डालने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
देश के प्रधानमंत्री होने के नाते, मोदी जी का ये कर्तव्य है कि टैक्स देने वाली जनता पर इतना अधिक कर-भार डालने के बाद उन्हें अपने कामों में जल्दी ही परिणाम दिखाने चाहिए जो पिछले दो सालों में नदारद हैं. वर्ना तो जनता जनार्दन अगले चुनावों में आपको आपका रिजल्ट थमा ही देगी.
Posted by Sumit Negi at 5:46:00 PM
Labels: राजनीति
Location: Bengaluru, Karnataka 560001, India -
Its just propaganda...there has been NO development, NO new jobs...same situation as if Congress is at power...
-
parm joy and ndtv has always been anti modi...
-
70 CRORE people Sleep Hungry.. 35 CRORE children BEG or Work for "Roti"... so far, Modi has done NOTHING about Corruption and Poverty... It takes only 6 MONTHS to make ENTIRE System Transparent using Computers and "Daily" Performance Report of ALL Govt. Employees..
-
Kyun Jali naaa ! NDTV ! Bitch ! Jai Modi ! Jai Hind !
18m 17sLenght
22Rating